रेहम खान और ‘राणा सांगा’ उपनाम की दिलचस्प कहानी
पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान की पूर्व पत्नी, रेहम खान, हमेशा अपने बयानों और आत्मकथात्मक किताबों के कारण चर्चा में रही हैं। लेकिन उनके जीवन का एक किस्सा जो कम ही लोग जानते हैं, वह है उनके बचपन में उन्हें दिए गए उपनाम – ‘राणा सांगा’। इस नाम के पीछे छिपी कहानी न केवल उनके स्वभाव को दर्शाती है बल्कि भारतीय इतिहास के एक महान योद्धा राणा सांगा से भी जुड़ी हुई है। यह लेख इस उपनाम के पीछे की पूरी पृष्ठभूमि को उजागर करेगा और राणा सांगा की ऐतिहासिक वीरता पर भी रोशनी डालेगा।
बचपन की उछल-कूद और साहस ने दिलाया ‘राणा सांगा’ नाम
रेहम खान ने एक साक्षात्कार में खुद यह खुलासा किया था कि जब वह छोटी थीं, तो वह बेहद सक्रिय और उछल-कूद करने वाली बच्ची थीं। उन्हें चढ़ना, कूदना और खेलते वक्त खुद को घायल कर लेना आम बात थी। उनके इस साहसी और निडर स्वभाव के कारण उनके घरवालों ने मजाकिया अंदाज में उनका नाम ‘राणा सांगा’ रख दिया। यह नाम एक तरह से उनके बचपन के स्वभाव की पहचान बन गया।
यह नाम यूं ही नहीं दिया गया था। राणा सांगा भारतीय इतिहास में एक ऐसे योद्धा रहे हैं जो अत्यंत साहसी, निडर और अडिग थे। एक योद्धा के रूप में रेहम के परिवार ने उनके स्वभाव में वही साहस देखा और उसी तुलना में उन्होंने यह उपनाम दिया।
राणा सांगा कौन थे?
राणा सांगा का असली नाम संग्राम सिंह था और वे 16वीं शताब्दी में मेवाड़ (वर्तमान राजस्थान) के शासक थे। वे सिसोदिया वंश के सदस्य थे और उनकी वीरता पूरे भारत में प्रसिद्ध थी। उन्हें भारतीय उपमहाद्वीप के इतिहास में महान राजपूत योद्धाओं में गिना जाता है।
राणा सांगा ने दिल्ली, मालवा और गुजरात के सुल्तानों के खिलाफ कई युद्ध लड़े और उनमें से अधिकतर में विजय प्राप्त की। सबसे उल्लेखनीय बात यह है कि वे घायल अवस्था में भी युद्ध के मैदान में डटे रहे। कहा जाता है कि उनके शरीर पर 80 से अधिक जख्म थे, एक आंख और एक हाथ खो चुके थे और वे एक पैर से लंगड़े भी हो गए थे, लेकिन इसके बावजूद उन्होंने अपनी वीरता और नेतृत्व क्षमता में कभी कमी नहीं आने दी।
बाबर के खिलाफ राणा सांगा की आखिरी लड़ाई
1527 में पानीपत की पहली लड़ाई के बाद भारत में मुगल शासन स्थापित हो गया। इसके बाद बाबर और राणा सांगा के बीच खानवा का प्रसिद्ध युद्ध हुआ। यह युद्ध भारतीय इतिहास के सबसे निर्णायक युद्धों में से एक था। राणा सांगा ने बाबर की सेना के खिलाफ वीरता से मोर्चा लिया। हालांकि इस युद्ध में वे पराजित हुए, लेकिन उनकी बहादुरी और युद्ध कौशल को आज भी याद किया जाता है।
रेहम खान का साहसी व्यक्तित्व
रेहम खान का बचपन भले ही पाकिस्तान में बीता हो, लेकिन उनका स्वभाव हमेशा निडर और आत्मविश्वास से भरपूर रहा है। पत्रकारिता, प्रसारण और लेखन के क्षेत्र में उन्होंने अपने करियर की शुरुआत की और फिर इमरान खान से विवाह के बाद वे राजनीति और सामाजिक मुद्दों पर खुलकर बोलने लगीं। उनके द्वारा लिखी गई आत्मकथा में उन्होंने कई विवादास्पद विषयों को उठाया और सच्चाई को सामने लाने का साहस दिखाया।
उनका यह स्वभाव यह दर्शाता है कि ‘राणा सांगा’ जैसे उपनाम को उनके लिए केवल मजाक या भावनात्मक पहचान नहीं माना जा सकता, बल्कि यह उनके पूरे व्यक्तित्व को परिभाषित करता है।
‘राणा सांगा’ उपनाम का सांस्कृतिक और भावनात्मक महत्व
भारत और पाकिस्तान दोनों देशों में ऐतिहासिक पात्रों का सामाजिक प्रभाव बहुत गहरा है। राणा सांगा जैसे वीर पुरुष के नाम को किसी व्यक्ति को उपनाम के रूप में दिया जाना एक प्रकार का सम्मान होता है। इससे यह स्पष्ट होता है कि रेहम खान के परिवार में भी भारतीय इतिहास के योद्धाओं के प्रति सम्मान की भावना थी।
बचपन में किसी बच्चे को उपनाम देना एक पारिवारिक परंपरा हो सकती है, लेकिन जब यह उपनाम राणा सांगा जैसा हो, तो यह व्यक्ति की छवि को एक नए दृष्टिकोण से दिखाता है।
निष्कर्ष
रेहम खान की जिंदगी के इस किस्से ने उनके साहसी और निडर स्वभाव को न केवल उजागर किया, बल्कि इतिहास से जुड़ाव का एक अनोखा पहलू भी दिखाया। ‘राणा सांगा’ नाम केवल एक उपनाम नहीं था, बल्कि यह एक प्रतीक था – साहस, जुझारूपन और आत्मबल का। राणा सांगा की तरह ही, रेहम खान भी अपने जीवन में कई कठिनाइयों और आलोचनाओं का सामना करती रहीं, लेकिन उन्होंने कभी हार नहीं मानी।
इतिहास और वर्तमान को जोड़ती यह कहानी हमें यह भी सिखाती है कि किसी भी व्यक्ति की पहचान केवल उसके नाम से नहीं, बल्कि उसके स्वभाव और कर्मों से होती है।