पिथौरागढ़ की भर्ती रैली ने खोली बेरोजगारी की सच्चाई
उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले में हाल ही में आयोजित प्रादेशिक सेना भर्ती रैली में जो तस्वीरें सामने आईं, वह देश की वर्तमान बेरोजगारी की स्थिति को बेनकाब कर रही हैं। मात्र 133 पदों के लिए लगभग 25,000 युवाओं का जुटना यह दर्शाता है कि किस तरह देश का युवा नौकरी की आस में दर-दर की ठोकरें खा रहा है। यह नजारा विकास के दावों के विपरीत एक कड़वा सच प्रस्तुत करता है, जहाँ पढ़े-लिखे युवा सेना भर्ती जैसी कठिन प्रक्रिया में अपनी जान जोखिम में डालकर शामिल हो रहे हैं।
वीडियो वायरल, लेकिन सरकार अब भी खामोश
भर्ती स्थल से जो वीडियो सामने आए, उनमें हजारों युवा खुले मैदानों में बैठे नजर आ रहे हैं, कुछ कचरे के ढेर के पास तो कुछ बसों की छतों और डिक्की में लटकते हुए भर्ती स्थल तक पहुंचे। इस वीडियो ने सोशल मीडिया पर सनसनी फैला दी, लेकिन हैरानी की बात यह है कि अब तक सरकार या किसी उच्च अधिकारी ने इस पर कोई गंभीर प्रतिक्रिया नहीं दी है। इस घटना को देखकर एक ही सवाल उठता है – क्या यही है "नया भारत" जिसमें युवाओं को नौकरी के लिए इस स्तर तक संघर्ष करना पड़ता है?
प्रशासनिक अव्यवस्था ने बढ़ाई परेशानी
पिथौरागढ़ में आयोजित इस भर्ती रैली में ना तो पर्याप्त खाने-पीने की व्यवस्था थी, ना ही युवाओं के रहने के लिए कोई सुरक्षित ठिकाना। हजारों युवा खुले में रात बिताने को मजबूर हुए। शौचालय की व्यवस्था ना होने के कारण स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं भी सामने आईं। स्थानीय प्रशासन के हाथ-पांव फूले हुए नजर आए। भीड़ को नियंत्रित करने के लिए पुलिस को लाठीचार्ज करना पड़ा, जिससे भगदड़ जैसी स्थिति बन गई और कई उम्मीदवार घायल भी हो गए।
देश में युवाओं की हताशा की तस्वीर
पिथौरागढ़ की यह घटना यह स्पष्ट करती है कि देश के युवा किस मानसिक और सामाजिक दबाव में जी रहे हैं। ग्रेजुएट, पोस्ट ग्रेजुएट और डिप्लोमा धारक युवा भी अब मात्र चंद पदों के लिए कठिन भौगोलिक परिस्थिति में भी शामिल हो रहे हैं। यह साफ तौर पर दर्शाता है कि बेरोजगारी देश के हर कोने में अपनी जड़ें जमा चुकी है, और सरकार के लाख दावों के बावजूद स्थिति सुधरती नजर नहीं आ रही।
सुप्रीम कोर्ट और सरकार की चुप्पी सवालों के घेरे में
यहां एक बड़ा सवाल यह भी उठता है कि जब किसी राज्य में कानून-व्यवस्था बिगड़ती है या मानवाधिकारों का उल्लंघन होता है, तो सुप्रीम कोर्ट स्वतः संज्ञान लेता है। लेकिन पिथौरागढ़ जैसे घटनाक्रम, जहां हजारों युवाओं की सुरक्षा खतरे में थी, उस पर अब तक न तो कोर्ट ने कोई संज्ञान लिया और न ही सरकार ने ठोस कदम उठाए। यह चुप्पी कई सवालों को जन्म देती है – क्या उत्तराखंड के युवा अनदेखे रह जाएंगे? क्या सिर्फ वायरल वीडियो बनने से युवाओं का दर्द मिट जाएगा?
बेरोजगारी के खिलाफ अब युवाओं को खुद खड़ा होना होगा
सरकार की ओर से रोजगार सृजन के बड़े-बड़े दावे किए जाते हैं, लेकिन ज़मीनी हकीकत इससे उलट है। युवाओं की लंबी कतारें, अव्यवस्था और आशा में डूबे चेहरे इस बात का प्रमाण हैं कि उन्हें अब भी एक स्थिर और सम्मानजनक रोजगार की तलाश है। युवाओं को चाहिए कि वे लोकतांत्रिक तरीके से अपने अधिकारों के लिए आवाज उठाएं और सरकार से जवाब मांगें कि आखिर कब तक उन्हें यूं दर-बदर भटकना पड़ेगा?
निष्कर्ष: यह सिर्फ एक भर्ती नहीं, बेरोजगारी का आईना है
पिथौरागढ़ की यह घटना केवल एक सेना भर्ती प्रक्रिया की अव्यवस्था नहीं है, यह पूरे देश में बढ़ती बेरोजगारी और सरकार की नाकामी का जीता-जागता उदाहरण है। यदि अब भी इस विषय पर गंभीरता से विचार नहीं किया गया, तो यह समस्या आने वाले समय में और भी विकराल रूप ले सकती है। सरकार को चाहिए कि रोजगार नीति को नए सिरे से तैयार करे, ग्रामीण क्षेत्रों में विशेष रोजगार कार्यक्रम लागू करे और भर्ती प्रक्रिया को पारदर्शी व सुरक्षित बनाए।