परिचय
भारत एक आध्यात्मिक और धार्मिक परंपराओं से समृद्ध राष्ट्र है, जहां संत-महात्माओं के आश्रम न केवल साधना का केंद्र होते हैं, बल्कि समाज सेवा, संस्कृति संरक्षण और मानवता की सेवा के प्रतीक भी माने जाते हैं। हाल ही में गुजरात सरकार द्वारा अहमदाबाद के मोटेरा क्षेत्र में स्थित संत श्री आशारामजी बापू के आश्रम को हटाने की योजना बनाई गई है। यह निर्णय न केवल धार्मिक भावनाओं को आहत करता है, बल्कि एक प्राचीन आध्यात्मिक केंद्र की विरासत पर भी संकट खड़ा करता है।
मोटेरा आश्रम और सरकारी अधिग्रहण योजना
गुजरात सरकार ने अहमदाबाद के मोटेरा क्षेत्र में सरदार पटेल स्पोर्ट्स एन्क्लेव और ओलंपिक विलेज के निर्माण हेतु जिस भूमि का अधिग्रहण प्रस्तावित किया है, उसमें संत श्री आशारामजी आश्रम की भूमि भी शामिल है। सरकार का कहना है कि यदि भारत को 2036 ओलंपिक की मेजबानी करनी है, तो मोटेरा क्षेत्र में अत्याधुनिक सुविधाओं का विकास जरूरी है। इसके लिए लगभग 25 एकड़ भूमि अधिग्रहण का प्रस्ताव रखा गया है, जिसमें यह आश्रम आता है।
न्यायिक प्रक्रिया और ट्रस्ट की याचिका
आशारामजी आश्रम ट्रस्ट ने इस प्रस्ताव के खिलाफ गुजरात उच्च न्यायालय में याचिका दाखिल की थी, जिसमें उन्होंने आश्रम को एक धार्मिक एवं सार्वजनिक सेवा का केंद्र बताते हुए इसे न हटाने की अपील की। ट्रस्ट ने यह भी बताया कि यहां प्रतिदिन हजारों लोग साधना, सेवा और आध्यात्मिक मार्गदर्शन के लिए आते हैं। हालांकि, हाईकोर्ट ने ट्रस्ट की याचिका को खारिज करते हुए कहा कि मोटेरा में बना यह आश्रम अतिक्रमण की श्रेणी में आता है और सरकार का विकास कार्य इसमें प्राथमिकता रखता है।
धार्मिक महत्व और आश्रम की भूमिका
संत श्री आशारामजी बापू के आश्रम केवल पूजा या साधना का स्थल नहीं हैं, बल्कि यहां निशुल्क शिक्षा, चिकित्सा, अन्नदान, संस्कार शिविर, और गौसेवा जैसे सामाजिक प्रकल्प भी चलाए जाते हैं। कई भक्तों का कहना है कि उन्हें यहां मानसिक शांति, आत्मबल और रोगों से मुक्ति मिली है। आश्रम ट्रस्ट द्वारा चलाई जा रही सेवा योजनाएं हजारों गरीब और जरूरतमंद लोगों की सहायता करती रही हैं। इसे एक "Spiritual Sanctuary" कहा जाता है, जो भगवन्नाम जप और धर्मसंरक्षण का जीवंत केंद्र है।
सरकारी विकास बनाम धार्मिक भावनाएं
इस पूरे विवाद का मूल द्वंद्व विकास बनाम धार्मिक भावना के बीच है। सरकार का दृष्टिकोण है कि अंतरराष्ट्रीय खेल आयोजन के लिए जरूरी ढांचा तैयार करना देश के लिए गौरव का विषय है, जबकि भक्तों का कहना है कि एक आध्यात्मिक शक्ति केंद्र को हटाना धार्मिक आस्था के साथ अन्याय है। यह भी सच है कि अगर आश्रम की स्थापना अवैध भूमि पर की गई थी, तो उसके लिए वैधानिक प्रक्रिया अपनाई जानी चाहिए थी, लेकिन यदि वह भूमि ट्रस्ट के नाम है या वैध है, तो उस पर कार्रवाई करना संविधान में दिए गए धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकारों का उल्लंघन हो सकता है।
भक्तों का आक्रोश और समर्थन अभियान
सोशल मीडिया पर "आश्रम बचाओ अभियान" तेजी से वायरल हो रहा है। देश-विदेश से भक्तगण इस निर्णय के खिलाफ आवाज़ उठा रहे हैं। कई श्रद्धालु कह रहे हैं कि जहां एक ओर सरकार योग और आयुर्वेद को विश्व मंच पर बढ़ावा देने की बात करती है, वहीं दूसरी ओर एक जीवंत और सक्रिय आध्यात्मिक केंद्र को हटाने का प्रयास किया जा रहा है। "Heritage Under Threat" जैसे टैग सोशल मीडिया पर ट्रेंड कर रहे हैं।
नैतिक और संवैधानिक पहलू
भारत में संविधान के अनुच्छेद 25 और 26 के अंतर्गत प्रत्येक नागरिक को धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार प्राप्त है। यदि किसी धार्मिक संस्था द्वारा समाज सेवा और आध्यात्मिक उत्थान का कार्य किया जा रहा है, तो उसे हटाना केवल भौतिक संरचना को नष्ट करना नहीं बल्कि उन मूल्यों और परंपराओं पर भी प्रहार करना है, जिन पर यह देश टिका है।
क्या समाधान हो सकता है?
सरकार और ट्रस्ट के बीच संवाद की आवश्यकता है। यदि वास्तव में ओलंपिक परियोजना के लिए भूमि आवश्यक है, तो सरकार को वैकल्पिक भूमि देकर आश्रम को पुनर्स्थापित करने की सहमति पर कार्य करना चाहिए। इससे धार्मिक भावनाओं को ठेस नहीं पहुंचेगी और विकास की राह भी प्रशस्त होगी। दोनों पक्षों की भावनाओं और जिम्मेदारियों को समझकर ही एक संतुलित समाधान निकाला जा सकता है।
निष्कर्ष
संत श्री आशारामजी आश्रम को हटाने का प्रस्ताव केवल एक भवन के स्थानांतरण का मामला नहीं है, यह उन हजारों लोगों की आस्था, सेवा, संस्कार और संस्कृति के संरक्षण का विषय है। जब देश आध्यात्मिक नेतृत्व के लिए विश्व भर में सराहा जा रहा है, तो अपने ही आध्यात्मिक केंद्रों को खतरे में डालना दुर्भाग्यपूर्ण है। सरकार को चाहिए कि वह श्रद्धालुओं की भावनाओं का सम्मान करे और इस मुद्दे का समाधान संवेदनशीलता और न्याय के साथ निकाले।
धार्मिक धरोहर की रक्षा करें - आश्रम बचाएं, संस्कृति बचाएं
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