परिचय: 63 साल पुरानी संधि पर विराम
23 अप्रैल 2025 को भारत सरकार ने एक ऐतिहासिक निर्णय लेते हुए पाकिस्तान के साथ 1960 में हुई सिंधु जल संधि (Indus Water Treaty) को तत्काल प्रभाव से निलंबित कर दिया है। यह निर्णय जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकवादी हमले के बाद लिया गया, जिसमें 26 निर्दोष भारतीय नागरिकों की मौत हो गई। सरकार ने इसे राष्ट्रीय सुरक्षा और आत्म-सम्मान का मामला बताते हुए यह कड़ा कदम उठाया है।
क्या है सिंधु जल संधि?
सिंधु जल संधि 1960 में भारत और पाकिस्तान के बीच विश्व बैंक की मध्यस्थता से हुई थी। इस संधि के तहत सिंधु, झेलम और चिनाब नदियों का जल पाकिस्तान को दिया गया था जबकि रावी, ब्यास और सतलज नदियों का उपयोग भारत कर सकता था। इस संधि को अब तक दुनिया के सबसे सफल जल समझौतों में से एक माना जाता था, क्योंकि भारत-पाकिस्तान के बीच तनाव के बावजूद यह संधि बरकरार रही।
भारत ने क्यों लिया यह फैसला?
सरकार के अनुसार यह निर्णय पहलगाम में हुए आतंकवादी हमले की प्रतिक्रिया में लिया गया है। इस हमले के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में हुई सुरक्षा कैबिनेट समिति की बैठक में यह फैसला किया गया। यह कदम स्पष्ट संकेत है कि भारत अब आतंकवाद को किसी भी रूप में सहन नहीं करेगा, और पाकिस्तान के साथ द्विपक्षीय संबंधों में कठोर नीति अपनाएगा।
अन्य बड़े कदम जो भारत ने उठाए
सिर्फ सिंधु जल संधि को निलंबित करना ही नहीं, भारत सरकार ने कई अन्य निर्णायक कदम भी उठाए हैं। वाघा-अटारी सीमा को बंद कर दिया गया है, पाकिस्तान के नागरिकों को दिए गए वीज़ा रद्द कर दिए गए हैं, और भारत में मौजूद सभी पाकिस्तानी नागरिकों को 48 घंटे के अंदर देश छोड़ने का आदेश दिया गया है। इसके साथ ही पाकिस्तान उच्चायोग के रक्षा, नौसेना, वायुसेना और सैन्य सलाहकारों को 'अवांछित व्यक्ति' घोषित कर एक सप्ताह के भीतर भारत छोड़ने को कहा गया है।
इस फैसले का प्रभाव क्या होगा?
सिंधु जल संधि के निलंबन का प्रभाव सिर्फ भारत और पाकिस्तान तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि यह दक्षिण एशिया की क्षेत्रीय स्थिरता और जल संसाधनों के प्रबंधन पर भी असर डालेगा। पाकिस्तान लंबे समय से भारत पर संधि के उल्लंघन का आरोप लगाता रहा है, वहीं भारत का यह मानना रहा है कि पाकिस्तान इसका राजनीतिक लाभ उठाता रहा है। इस निर्णय से पाकिस्तान पर जल संकट गहराने की आशंका है।
क्या यह फैसला अंतिम है?
सरकार की ओर से यह साफ किया गया है कि यह निलंबन “तत्काल प्रभाव से” किया गया है, लेकिन इसे स्थायी रूप से समाप्त किया जाएगा या नहीं, यह अभी स्पष्ट नहीं है। विशेषज्ञों का मानना है कि यदि पाकिस्तान अपने रुख में बदलाव नहीं लाता और आतंकवाद को समर्थन देना नहीं छोड़ता, तो यह संधि भविष्य में पूर्णतः समाप्त हो सकती है।
निष्कर्ष: क्या यह बदलते भारत का संकेत है?
यह फैसला इस बात का संकेत है कि भारत अब पुराने ढर्रे पर नहीं चलना चाहता। भारत अब अपनी सुरक्षा, आत्म-सम्मान और अंतरराष्ट्रीय स्थिति को प्राथमिकता दे रहा है। सिंधु जल संधि को निलंबित करना केवल एक भौगोलिक या पर्यावरणीय निर्णय नहीं है, बल्कि यह भारत की कूटनीतिक दिशा का भी संकेत है।
महत्वपूर्ण तथ्य:
- सिंधु जल संधि पर हस्ताक्षर 1960 में भारत के प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब खान ने किए थे।
- भारत ने 2023 में इस संधि की समीक्षा और संशोधन की मांग की थी जिसे पाकिस्तान ने अस्वीकार कर दिया।
- यह पहली बार है जब भारत ने संधि को निलंबित करने का फैसला लिया है।
यह निर्णय आने वाले समय में भारत-पाकिस्तान संबंधों की दिशा और दशा तय करने में निर्णायक भूमिका निभाएगा।