भारत के न्यायिक इतिहास में एक नया और ऐतिहासिक अध्याय तब जुड़ा जब देश के वर्तमान मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना ने न्यायमूर्ति भूषण रामकृष्ण गवई को अपना उत्तराधिकारी नामित किया। यह केवल एक न्यायिक परंपरा का निर्वहन नहीं था, बल्कि यह उस विविधता और समावेशिता का प्रमाण भी है, जिसे भारत का संविधान हमेशा बढ़ावा देता रहा है। न्यायमूर्ति गवई 14 मई 2025 को भारत के 52वें मुख्य न्यायाधीश के रूप में पदभार ग्रहण करेंगे। इससे पहले वर्तमान मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना 13 मई को सेवानिवृत्त हो जाएंगे।
न्यायमूर्ति बी.आर. गवई: एक संक्षिप्त परिचय
न्यायमूर्ति भूषण रामकृष्ण गवई का जन्म 24 नवंबर 1960 को महाराष्ट्र के अमरावती जिले में हुआ था। उन्होंने नागपुर विश्वविद्यालय से कानून की पढ़ाई की और 1985 में वकालत की शुरुआत की। वे बॉम्बे हाई कोर्ट में वरिष्ठ अधिवक्ता रहे और अपनी योग्यता व सिद्धांतों के चलते 2003 में बॉम्बे हाई कोर्ट के न्यायाधीश नियुक्त हुए। इसके बाद, 2019 में उन्हें सर्वोच्च न्यायालय का न्यायाधीश बनाया गया।
न्यायमूर्ति गवई की नियुक्ति कई मायनों में ऐतिहासिक है। वे देश के इतिहास में दलित समुदाय से आने वाले दूसरे व्यक्ति होंगे जो भारत के सर्वोच्च न्यायिक पद पर आसीन होंगे। उनसे पहले केवल न्यायमूर्ति के.जी. बालकृष्णन ने यह गौरव हासिल किया था। यह सामाजिक समरसता और न्यायिक समावेश का प्रतीक है।
ऐतिहासिक फैसलों में न्यायमूर्ति गवई की भूमिका
न्यायमूर्ति गवई का कार्यकाल कई ऐतिहासिक निर्णयों से भरा हुआ है। उन्होंने अनुच्छेद 370 की संवैधानिकता पर ऐतिहासिक फैसले में हिस्सा लिया और इसे पूरी तरह वैध ठहराया। अनुच्छेद 370 को हटाकर जम्मू-कश्मीर को भारत के अन्य राज्यों के समान दर्जा देना भारतीय राजनीति और संविधान के इतिहास का एक महत्वपूर्ण मोड़ था। इस फैसले में न्यायमूर्ति गवई ने स्पष्ट रूप से बताया कि अनुच्छेद 370 अस्थायी था और इसे हटाना केंद्र सरकार का संवैधानिक अधिकार है।
इसके अलावा न्यायमूर्ति गवई ने विमुद्रीकरण (Demonetisation) के निर्णय को भी संवैधानिक मान्यता दी। नवंबर 2016 में लागू की गई विमुद्रीकरण नीति पर सुप्रीम कोर्ट में कई याचिकाएं दाखिल की गई थीं। न्यायमूर्ति गवई ने इन याचिकाओं को खारिज करते हुए सरकार के फैसले को वैध करार दिया और कहा कि यह नीति आर्थिक सुधारों के संदर्भ में उचित थी।
न्यायपालिका में विविधता की जीत
भारत एक विविधताओं वाला देश है और न्यायपालिका का दायित्व है कि वह इन विविधताओं को सम्मान दे। न्यायमूर्ति गवई की नियुक्ति इस दिशा में एक बड़ा कदम है। वह केवल दलित समुदाय का प्रतिनिधित्व नहीं करते, बल्कि उन सभी लोगों की आशाओं और आकांक्षाओं का प्रतिनिधित्व करते हैं जो सामाजिक रूप से हाशिए पर हैं। उनकी नियुक्ति यह संकेत देती है कि योग्यता, कार्यकुशलता और सिद्धांतों के आधार पर कोई भी व्यक्ति सर्वोच्च न्यायिक पद तक पहुंच सकता है।
सीजेआई संजीव खन्ना का कार्यकाल और उनके योगदान
मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना ने 11 नवंबर 2024 को भारत के 51वें मुख्य न्यायाधीश के रूप में कार्यभार संभाला था। उनके कार्यकाल में कई महत्वपूर्ण निर्णय लिए गए। विशेष रूप से चुनावी बॉन्ड योजना को असंवैधानिक घोषित करना, अनुच्छेद 370 पर अंतिम निर्णय देना, और न्यायिक पारदर्शिता को बढ़ावा देना उनके कार्यकाल की बड़ी उपलब्धियां हैं।
मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना के पास अभी कुछ दिन का कार्यकाल बचा है और उम्मीद की जा रही है कि वे वक्फ कानून से जुड़ी महत्वपूर्ण याचिका पर फैसला देंगे। यह फैसला भी देश की न्याय व्यवस्था में अहम भूमिका निभा सकता है।
वक्फ एक्ट पर संभावित फैसला
वक्फ अधिनियम पर सुप्रीम कोर्ट में याचिकाएं लंबित हैं, जिनमें इस अधिनियम की वैधता और इसके कार्यान्वयन में पारदर्शिता पर सवाल उठाए गए हैं। मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना की अध्यक्षता वाली पीठ इस पर फैसला सुना सकती है, जिससे देशभर के धार्मिक ट्रस्ट और उनकी संपत्तियों के संचालन पर गहरा असर पड़ सकता है। यदि यह फैसला उनके कार्यकाल के दौरान आता है तो यह उनके न्यायिक जीवन का एक और ऐतिहासिक निर्णय होगा।
भारत-अमेरिका और वैश्विक प्रभाव
भारत के न्यायिक निर्णय केवल देश तक सीमित नहीं रहते, बल्कि उनका वैश्विक प्रभाव भी होता है। न्यायपालिका की पारदर्शिता, विविधता और निष्पक्षता भारत की लोकतांत्रिक साख को मजबूत बनाते हैं। न्यायमूर्ति गवई जैसे न्यायाधीशों की नियुक्ति से यह संदेश जाता है कि भारत में कानून का राज सर्वोपरि है और समाज के सभी वर्गों को न्याय पाने का समान अवसर है।
निष्कर्ष
न्यायमूर्ति बी.आर. गवई की नियुक्ति न केवल न्यायपालिका के लिए, बल्कि पूरे देश के लिए गर्व का क्षण है। यह नियुक्ति उस समावेशी दृष्टिकोण की पुष्टि करती है जिसे भारतीय संविधान सदैव प्रोत्साहित करता रहा है। मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना का कार्यकाल भले ही छोटा रहा हो, लेकिन उनकी निष्पक्षता, न्यायप्रियता और संविधान के प्रति निष्ठा ने न्यायपालिका को और भी सशक्त बनाया।
न्यायमूर्ति गवई से उम्मीद की जाती है कि वे अपने अनुभव, दृष्टिकोण और संवैधानिक मूल्यों के साथ देश की सर्वोच्च न्यायपालिका का नेतृत्व प्रभावी ढंग से करेंगे। उनकी नियुक्ति से उन युवाओं को भी प्रेरणा मिलेगी जो समाज के विभिन्न वर्गों से आते हैं और न्यायपालिका में ऊँचाइयों तक पहुंचने का सपना देखते हैं।