भारतीय सीमा पर बढ़ता सैन्य तनाव और गांधी सागर बांध की रणनीतिक भूमिका: जानिए पूरी सच्चाई

भारत और पाकिस्तान के बीच सीमा पर एक बार फिर से तनाव तेजी से बढ़ता जा रहा है। हाल ही में कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले में 26 भारतीय पर्यटकों की जान जाने के बाद पूरे देश में गुस्से की लहर दौड़ गई। भारत सरकार ने इस हमले के पीछे पाकिस्तान आधारित आतंकी संगठनों का हाथ होने की आशंका जताई है, वहीं पाकिस्तान ने सभी आरोपों को नकारते हुए खुद को इससे अलग बताया है। इस पूरे घटनाक्रम ने न केवल दो देशों के बीच तनाव को बढ़ाया है बल्कि अब यह विवाद सिंधु जल संधि तक पहुंच गया है।



भारत ने इस हमले के बाद सिंधु जल संधि को आंशिक रूप से निलंबित करने का फैसला लिया है। इस फैसले का सीधा प्रभाव पाकिस्तान की सिंचाई और बिजली उत्पादन परियोजनाओं पर पड़ सकता है क्योंकि पाकिस्तान को अपने जल संसाधनों के लिए काफी हद तक भारत से आने वाले पानी पर निर्भर रहना पड़ता है। पाकिस्तान ने भारत के इस कदम को युद्ध की कार्रवाई तक करार दे दिया है और चेतावनी दी है कि यदि भारत पानी रोकता है तो वह अंतरराष्ट्रीय मंचों पर इसे चुनौती देगा।

इस पूरे घटनाक्रम में एक ऐसा नाम भी चर्चा में आ रहा है जो आमतौर पर सामरिक मामलों में नहीं आता—गांधी सागर बांध। यह बांध मध्य प्रदेश के मंदसौर जिले में चंबल नदी पर स्थित है और इसकी रणनीतिक, आर्थिक तथा पर्यावरणीय भूमिका को इस समय विशेष रूप से समझने की जरूरत है।

गांधी सागर बांध का निर्माण 1954 में शुरू हुआ था और यह 1960 में पूरी तरह से तैयार हो गया। यह बांध 62.17 मीटर ऊंचा और 514 मीटर लंबा है, जिसकी जल संग्रहण क्षमता 7.322 बिलियन घन मीटर है। बांध से 115 मेगावाट की जलविद्युत उत्पादन क्षमता भी जुड़ी हुई है, जो इस क्षेत्र के लिए ऊर्जा का एक प्रमुख स्रोत है। इसके जलाशय का विस्तार लगभग 723 वर्ग किलोमीटर में है, जो इसे भारत के सबसे बड़े जलाशयों में से एक बनाता है।

चंबल नदी, जिस पर गांधी सागर बांध स्थित है, यमुना नदी की एक प्रमुख सहायक नदी है और इसका जल राजस्थान के कोटा बैराज तक पहुंचता है। यह जल मुख्य रूप से राजस्थान और मध्य प्रदेश के सिंचाई और पीने के पानी की आवश्यकताओं को पूरा करता है। जब भारत सिंधु जल संधि को लेकर कोई कदम उठाता है, तो ऐसे बांधों की भूमिका और भी अहम हो जाती है, क्योंकि यह जल प्रवाह को नियंत्रित करने का सामरिक उपकरण बन जाते हैं।

भारत और पाकिस्तान के बीच पहले से ही जल विवाद का लंबा इतिहास रहा है। 1960 में विश्व बैंक की मध्यस्थता से हुई सिंधु जल संधि के तहत भारत और पाकिस्तान के बीच छह नदियों का जल बंटवारा हुआ था। पूर्व की तीन नदियों—सिंधु, झेलम और चिनाब—का उपयोग पाकिस्तान के लिए सुनिश्चित किया गया, जबकि व्यास, सतलुज और रावी भारत के हिस्से में आए। अब जब भारत सिंधु जल संधि के प्रावधानों में बदलाव करने या उसे निलंबित करने की बात करता है, तो पाकिस्तान को चिंता होना स्वाभाविक है।



गांधी सागर बांध जैसे संरचनाएं इस समय और भी महत्वपूर्ण हो जाती हैं क्योंकि वे भारत के जल नियंत्रण की नीतियों में एक मजबूत उपकरण के रूप में कार्य कर सकती हैं। यदि भारत इन नदियों के जल को रोकने की दिशा में कोई कदम उठाता है, तो यह पाकिस्तान के लिए गंभीर कृषि संकट और बिजली आपूर्ति की बाधाओं का कारण बन सकता है।

इसके अलावा, गांधी सागर बांध का एक और पहलू है—पर्यावरणीय और पर्यटन से जुड़ा हुआ। यह बांध एक विशाल जलाशय बनाता है जो प्रवासी पक्षियों और अन्य वन्यजीवों के लिए आदर्श आवास है। यह क्षेत्र अंतरराष्ट्रीय पक्षी जीवन संस्था द्वारा "A4iii" श्रेणी में वर्गीकृत किया गया है, जो इसे एक महत्वपूर्ण पक्षी संरक्षित क्षेत्र बनाता है। साथ ही यह बांध क्षेत्रीय पर्यटन को भी बढ़ावा देता है, जिससे स्थानीय अर्थव्यवस्था को भी बल मिलता है।

इस प्रकार गांधी सागर बांध केवल एक जलविद्युत परियोजना नहीं है बल्कि यह भारत के जल संसाधन प्रबंधन, पर्यावरण संरक्षण, ऊर्जा उत्पादन और अब सामरिक नीति में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। वर्तमान परिप्रेक्ष्य में इस बांध की अहमियत इसलिए और बढ़ गई है क्योंकि यह उस भू-राजनीतिक विमर्श का हिस्सा बनता जा रहा है जो भारत और पाकिस्तान के बीच लगातार गहराता जा रहा है।

भारत सरकार को चाहिए कि वह इस प्रकार के जल संसाधनों को न केवल विकास और ऊर्जा के लिए बल्कि रणनीतिक दृष्टिकोण से भी इस्तेमाल में लाए। यह सुनिश्चित करना आवश्यक है कि भारत अपने जल संसाधनों का कुशल और व्यावसायिक प्रबंधन करे, जिससे देश की जल सुरक्षा बनी रहे और पड़ोसी देशों के साथ विवाद की स्थिति में भारत को एक सामरिक लाभ मिल सके।

अंततः, गांधी सागर बांध केवल मध्य भारत का एक बांध नहीं है, बल्कि यह पूरे उत्तर भारत की जल संरचना और भू-राजनीतिक संतुलन का एक अहम हिस्सा बन चुका है। इस बात को समझना और इस पर कार्य करना अब समय की मांग बन चुका है।