[बड़ी खबर] सुप्रीम कोर्ट में कल सुनवाई – पश्चिम बंगाल में राष्ट्रपति शासन लगाने की याचिका पर होगी सुनवाई

सुप्रीम कोर्ट में ऐतिहासिक सुनवाई की तैयारी

भारत के संवैधानिक इतिहास में एक और अहम मोड़ आने वाला है, जब सुप्रीम कोर्ट 22 अप्रैल 2025 को एक ऐसी याचिका पर सुनवाई करेगा जिसमें पश्चिम बंगाल में राष्ट्रपति शासन (President's Rule) लगाने की मांग की गई है। यह याचिका प्रसिद्ध अधिवक्ता विष्णु शंकर जैन द्वारा दाखिल की गई है। याचिका में कहा गया है कि पश्चिम बंगाल में कानून व्यवस्था पूरी तरह से चरमरा चुकी है और राज्य सरकार संवैधानिक कर्तव्यों के निर्वहन में असफल रही है।

न्यायपालिका बनाम कार्यपालिका – गंभीर सवाल उठे



इस याचिका की सुनवाई सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ न्यायाधीश न्यायमूर्ति बी.आर. गवई की बेंच में होगी, जो भविष्य में भारत के अगले मुख्य न्यायाधीश (CJI) बनने जा रहे हैं। दिलचस्प बात यह है कि सुनवाई से पहले ही कोर्ट की टिप्पणी चर्चा में आ गई है। कोर्ट ने कहा, “हम पर कार्यपालिका में हस्तक्षेप के आरोप लगाए जा रहे हैं, और आप हमसे राष्ट्रपति को यह आदेश देने की मांग कर रहे हैं कि वे राष्ट्रपति शासन लागू करें?”

यह टिप्पणी दर्शाती है कि न्यायपालिका इस विषय को अत्यंत गंभीरता से ले रही है क्योंकि इससे संविधान के अनुच्छेद 356 की वैधानिक व्याख्या और न्यायपालिका की सीमाओं पर बड़ा प्रश्न उठता है।

राष्ट्रपति शासन की मांग क्यों की गई?

याचिका में अधिवक्ता विष्णु शंकर जैन ने तर्क दिया है कि राज्य में कई घटनाएं हाल के समय में घट चुकी हैं, जिनमें से प्रमुख है मुर्शिदाबाद हिंसा। इस हिंसा में कथित रूप से सांप्रदायिक तनाव और प्रशासन की विफलता सामने आई है। याचिकाकर्ता का कहना है कि ऐसी घटनाएं बताती हैं कि राज्य सरकार संविधान के अनुच्छेद 21 (जीवन का अधिकार) का संरक्षण नहीं कर पा रही है और इसलिए अनुच्छेद 356 के तहत राष्ट्रपति शासन लगाया जाना चाहिए।

अनुच्छेद 356 क्या है? – संवैधानिक प्रावधान

अनुच्छेद 356 भारत के संविधान का वह प्रावधान है जिसके तहत यदि किसी राज्य में संवैधानिक तंत्र विफल हो जाता है, तो केंद्र सरकार राष्ट्रपति के माध्यम से उस राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू कर सकती है। यह निर्णय आमतौर पर राज्यपाल की रिपोर्ट या केंद्र सरकार की सिफारिश पर आधारित होता है। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट का यह कहना महत्वपूर्ण है कि न्यायपालिका इस पर रिट ऑफ मैंडेमस जारी नहीं कर सकती, यानी कोर्ट राष्ट्रपति को सीधे ऐसा करने का आदेश नहीं दे सकती।

राजनीतिक असर और संवैधानिक बहस

इस याचिका पर सुनवाई के बाद राजनीतिक हलकों में भी उबाल है। विपक्ष का आरोप है कि यह याचिका केंद्र सरकार के इशारे पर दायर की गई है जबकि याचिकाकर्ता इसे पूरी तरह से कानून और नागरिकों की सुरक्षा का विषय बता रहे हैं। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यदि सुप्रीम कोर्ट इस याचिका को सुनवाई योग्य मानते हुए कोई निर्देश देता है, तो यह देश में कार्यपालिका और न्यायपालिका के संबंधों की दिशा और भूमिका को पुनर्परिभाषित कर सकता है।

पश्चिम बंगाल में हालात कितने गंभीर हैं?

हाल के दिनों में पश्चिम बंगाल में राजनीतिक हिंसा, टारगेटेड किलिंग्स और सांप्रदायिक तनाव की खबरें लगातार सामने आई हैं। विशेष रूप से मुर्शिदाबाद जिले में हुई हिंसक घटनाएं और उसके बाद प्रशासन की प्रतिक्रिया पर कई सवाल उठे हैं। विपक्षी दलों ने इन घटनाओं की NIA (राष्ट्रीय जांच एजेंसी) से जांच की मांग की है और राज्य पुलिस पर गंभीर आरोप लगाए हैं।

क्या सुप्रीम कोर्ट सीधे राष्ट्रपति शासन लागू कर सकता है?

यह एक संवैधानिक बहस है। भारतीय संविधान के तहत राष्ट्रपति शासन लागू करने का अधिकार राष्ट्रपति को है, जो कि केंद्र सरकार की सिफारिश पर कार्य करते हैं। सुप्रीम कोर्ट केवल यह देख सकता है कि क्या राज्य में संवैधानिक तंत्र का उल्लंघन हुआ है या नहीं, लेकिन वह राष्ट्रपति को आदेश नहीं दे सकता कि वे राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू करें। इस विषय पर S.R. बोंसले केस (1994) में सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया था कि अनुच्छेद 356 का उपयोग अनुचित ढंग से नहीं किया जा सकता।

याचिका का राजनीतिक और संवैधानिक महत्व

इस याचिका की खासियत यह है कि यह एक अधिवक्ता द्वारा जनहित याचिका के रूप में दायर की गई है, ना कि कोई राजनीतिक पार्टी या विधायक द्वारा। इससे यह मामला राजनीतिक रंग से हटकर एक नागरिक अधिकार के रूप में प्रस्तुत किया गया है, जिससे इसकी वैधता पर विचार करने के लिए कोर्ट बाध्य है।

क्या हो सकता है कोर्ट का फैसला?

अगर कोर्ट यह मानता है कि याचिका में उठाए गए मुद्दे संवैधानिक दृष्टिकोण से गंभीर हैं, तो वह केंद्र सरकार से जवाब मांग सकता है। इसके बाद केंद्र सरकार यदि रिपोर्ट भेजती है कि राज्य में स्थिति खराब है, तो राष्ट्रपति शासन की प्रक्रिया आगे बढ़ सकती है। लेकिन यह प्रक्रिया पूरी तरह से कार्यपालिका के अधिकार क्षेत्र में आती है। सुप्रीम कोर्ट केवल निर्देशात्मक भूमिका निभा सकता है।

निष्कर्ष – कल की सुनवाई होगी ऐतिहासिक

22 अप्रैल 2025 को होने वाली यह सुनवाई न केवल पश्चिम बंगाल की राजनीतिक दिशा तय कर सकती है, बल्कि भारत के लोकतंत्र और संविधान की व्याख्या में भी एक नया अध्याय जोड़ सकती है। सुप्रीम कोर्ट का यह रुख कि वह कार्यपालिका के क्षेत्र में हस्तक्षेप से बच रहा है, यह दर्शाता है कि कोर्ट अपनी संवैधानिक सीमाओं को लेकर सजग है।

याचिका का उद्देश्य भले ही संवैधानिक व्यवस्था की रक्षा हो, लेकिन इसका असर देश की राजनीति और न्यायपालिका के अधिकार क्षेत्र पर गहरा असर डालेगा। सभी की निगाहें अब सुप्रीम कोर्ट की ओर टिकी हैं।

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