परिचय
बांग्लादेश में एक बार फिर हिंदू समुदाय पर हमला हुआ है, जिसने पूरे दक्षिण एशिया को झकझोर कर रख दिया है। दिनाजपुर जिले के भाबेश चंद्र रॉय, जो बांग्लादेश पूजा उत्सव परिषद के उपाध्यक्ष थे, की दिनदहाड़े बेरहमी से हत्या कर दी गई। यह घटना न केवल बर्बरता की पराकाष्ठा है, बल्कि बांग्लादेश में हिंदुओं की स्थिति को लेकर गंभीर चिंताओं को भी उजागर करती है। एक तरफ कट्टरपंथी ताकतें लगातार हिंसा फैला रही हैं, वहीं दूसरी तरफ सरकार की चुप्पी और निष्क्रियता पर भी सवाल उठ रहे हैं।
भाबेश चंद्र रॉय की निर्मम हत्या: एक चिंताजनक संकेत
18 अप्रैल 2025 को दिनाजपुर जिले के बसुदेबपुर गांव से 58 वर्षीय भाबेश चंद्र रॉय को अगवा कर लिया गया। चश्मदीदों के मुताबिक चार अज्ञात हमलावर मोटरसाइकिल पर आए और रॉय को उनके ही घर से जबरन बाहर ले गए। कुछ घंटे बाद उनका शव गांव के बाहर बरामद हुआ, जिस पर गंभीर चोटों के निशान थे। उन्हें पीट-पीटकर मौत के घाट उतारा गया। यह केवल एक हत्या नहीं, बल्कि पूरे हिंदू समुदाय को डराने और उनके अस्तित्व को खत्म करने की कोशिश का हिस्सा प्रतीत होता है।
बांग्लादेश में बढ़ते सांप्रदायिक हमले: आंकड़े और हकीकत
हाल के वर्षों में बांग्लादेश में हिंदू समुदाय पर हमलों में खतरनाक बढ़ोतरी हुई है। 2024 के अंत से लेकर 2025 की शुरुआत तक सैकड़ों मंदिरों को निशाना बनाया गया, मूर्तियों को तोड़ा गया, और हिंदू परिवारों की संपत्तियों को लूटा गया। बांग्लादेश मानवाधिकार आयोग और अंतरराष्ट्रीय संगठनों की रिपोर्ट के अनुसार, केवल छह महीनों में 150 से अधिक मंदिरों पर हमले हुए और दो दर्जन से अधिक हिंदुओं की हत्या की गई। यह घटनाएं केवल एक समुदाय के खिलाफ साजिश नहीं, बल्कि एक सुनियोजित सामाजिक सफाई (Ethnic Cleansing) का संकेत देती हैं।
इस्लामी कट्टरपंथ और राजनीतिक चुप्पी
बांग्लादेश में इस्लामी कट्टरपंथी समूह लगातार ताकतवर हो रहे हैं। सरकार और प्रशासन उनकी गतिविधियों पर लगाम लगाने में असफल रहे हैं। भाबेश चंद्र रॉय जैसे प्रतिष्ठित नेता को मार देना यह दर्शाता है कि कट्टरपंथियों को अब किसी का भी डर नहीं है। मोहम्मद युनुस की सरकार पर आरोप लग रहे हैं कि वह या तो इन घटनाओं की अनदेखी कर रही है या फिर उन्हें मौन समर्थन दे रही है। सोशल मीडिया पर वायरल वीडियो और रिपोर्ट्स दिखाती हैं कि कैसे हिंदुओं को खुलेआम धमकियां दी जा रही हैं और उनके घरों को जलाया जा रहा है।
पड़ोसी भारत की चिंता और भूमिका
भारत, जो बांग्लादेश का पड़ोसी और ऐतिहासिक रूप से सहयोगी रहा है, इन घटनाओं को लेकर गंभीर चिंताओं का सामना कर रहा है। भारत सरकार ने विदेश मंत्रालय के माध्यम से बांग्लादेश सरकार से अल्पसंख्यकों की सुरक्षा सुनिश्चित करने की अपील की है। साथ ही कई सामाजिक और धार्मिक संगठनों ने इस घटना की निंदा करते हुए भारत सरकार से कड़े कदम उठाने की मांग की है। सोशल मीडिया पर #JusticeForBhabeshRoy और #SaveBangladeshHindus जैसे हैशटैग ट्रेंड कर रहे हैं।
पश्चिम बंगाल की अशांति और बांग्लादेश का एजेंडा
विशेषज्ञों का मानना है कि बांग्लादेश की मौजूदा स्थिति का प्रभाव पश्चिम बंगाल तक दिखाई दे रहा है। वहां सांप्रदायिक तनाव की स्थिति बढ़ रही है और यह संदेह बढ़ता जा रहा है कि क्या बांग्लादेश की धरती से भारत में अस्थिरता फैलाने की साजिश चल रही है। यह चिंता तब और बढ़ जाती है जब बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों को निशाना बनाकर उन्हें पलायन के लिए मजबूर किया जाता है और फिर यह समुदाय सीमावर्ती भारतीय इलाकों में शरण लेने को विवश होता है।
अंतरराष्ट्रीय समुदाय की चुप्पी
संयुक्त राष्ट्र, अमनेस्टी इंटरनेशनल और अन्य मानवाधिकार संगठनों ने पहले भी बांग्लादेश में हो रहे अल्पसंख्यक उत्पीड़न पर चिंता जताई है, लेकिन ठोस कार्रवाई के स्तर पर कुछ नहीं हुआ है। भारत को चाहिए कि वह इस मुद्दे को अंतरराष्ट्रीय मंचों पर पुरजोर तरीके से उठाए और बांग्लादेश पर दबाव डाले कि वह अपने नागरिकों की सुरक्षा के प्रति जवाबदेह बने। साथ ही, यह भारत की जिम्मेदारी भी है कि वह अपनी सीमाओं के भीतर शरणार्थी बने हिंदू समुदाय की सुरक्षा और सम्मान की गारंटी दे।
निष्कर्ष: अब वक्त है एक ठोस नीति की
भाबेश चंद्र रॉय की हत्या एक चेतावनी है, न केवल बांग्लादेश के लिए बल्कि भारत के लिए भी। यह स्पष्ट है कि बांग्लादेश में कट्टरपंथी ताकतें सत्ता को चुनौती दे रही हैं और एक धार्मिक युद्ध छेड़ने की कोशिश कर रही हैं। अब भारत को चाहिए कि वह अपनी विदेश नीति में बदलाव लाए, कड़े रुख अपनाए और अपने पड़ोसी देश को यह स्पष्ट कर दे कि अगर वहां अल्पसंख्यकों की सुरक्षा नहीं हो सकती, तो इसके गंभीर परिणाम होंगे।
सरकार को अब गंभीर और ठोस कार्रवाई करनी चाहिए — इससे पहले कि यह नासूर बन जाए। बांग्लादेश को हिन्दू-विहीन राष्ट्र में बदलने की जो तैयारी हो रही है, उसे अब उजागर करना और उसका विरोध करना समय की आवश्यकता बन चुकी है। भारत को अपने पड़ोसी हिंदुओं की पीड़ा को केवल देखने वाला देश नहीं, बल्कि उनकी रक्षा करने वाला देश बनना होगा।
यदि अब भी देरी हुई, तो इतिहास हमसे यह सवाल करेगा कि हमने कब, क्यों और कैसे अपने ही जैसे लोगों की पीड़ा पर चुप्पी साध ली।