हाल ही में दिल्ली यूनिवर्सिटी के लक्ष्मीबाई कॉलेज की प्रिंसिपल ने एक अनोखा प्रयोग कर देशभर में चर्चा का विषय बना दिया है। उन्होंने अपने कॉलेज की दीवारों पर गाय के गोबर का लेप करवाया है। यह कदम किसी अंधविश्वास के कारण नहीं बल्कि एक शोध प्रोजेक्ट के तहत उठाया गया है जिसका नाम है – "Study of Heat Stress Control by Using Traditional Indian Knowledge" यानी "पारंपरिक भारतीय ज्ञान द्वारा गर्मी के तनाव को नियंत्रित करने का अध्ययन"।
क्यों लगाया गया गोबर?
भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में गाय के गोबर का उपयोग सदियों से घरों की दीवारों और फर्श पर किया जाता रहा है। इसका मुख्य कारण है इसकी शीतलता प्रदान करने की क्षमता और कीटाणुनाशक गुण। गर्मी में यह दीवारों को ठंडा रखता है और वातावरण को प्राकृतिक रूप से स्वच्छ बनाता है।
लक्ष्मीबाई कॉलेज की प्रिंसिपल का मानना है कि पुराने भवनों में एयर कंडीशनर की व्यवस्था नहीं हो पाने के कारण छात्रों को गर्मी से जूझना पड़ता है। इसीलिए उन्होंने सोचा कि क्यों न पारंपरिक ज्ञान का उपयोग कर आधुनिक समस्याओं का समाधान खोजा जाए?
क्या कहता है शोध?
इस शोध का उद्देश्य यह देखना है कि क्या गोबर से लीपी गई दीवारें कॉलेज की कक्षाओं को गर्मी से राहत दिला सकती हैं या नहीं। यह प्रयोग खासतौर पर उन भवनों पर केंद्रित है जिनकी संरचना पुरानी है और जहां वेंटिलेशन व कूलिंग सिस्टम की भारी कमी है।
प्रिंसिपल रूम में भी गोबर का लेप
जैसे ही यह प्रयोग शुरू हुआ, कॉलेज स्टाफ ने भी प्रिंसिपल के कमरे की दीवारों पर गोबर का लेप करना शुरू कर दिया। इस दृश्य का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो गया और देखते ही देखते यह एक गर्म बहस का मुद्दा बन गया।
जनता की प्रतिक्रिया
इस पूरे घटनाक्रम को लेकर लोगों की राय बंटी हुई है। एक वर्ग इसे इको-फ्रेंडली कदम मान रहा है और कह रहा है कि यह पारंपरिक भारतीय विज्ञान को सम्मान देने जैसा है। वहीं दूसरा वर्ग इसे आधुनिक शिक्षा प्रणाली के लिए शर्मनाक और अव्यवस्थित ढांचा बताकर आलोचना कर रहा है।
क्या चाहिए सरकार से?
छात्रों और अभिभावकों की मांग है कि सरकार को इस तरह के पारंपरिक प्रयोगों पर निर्भर रहने की बजाय कॉलेजों की मूलभूत सुविधाओं पर ध्यान देना चाहिए। आधुनिक शिक्षा के लिए आवश्यक है कि कॉलेजों में पर्याप्त एसी, वेंटिलेशन सिस्टम, और इन्फ्रास्ट्रक्चर हो ताकि छात्रों को बेहतर अध्ययन माहौल मिल सके।
निष्कर्ष
गोबर से दीवारें लीपना भले ही एक वैज्ञानिक अध्ययन के रूप में शुरू किया गया हो, लेकिन यह देश के शैक्षिक ढांचे की कमजोरियों को भी उजागर करता है। यह प्रयोग हमें यह सोचने पर मजबूर करता है कि कहीं हम तकनीकी प्रगति के इस युग में बुनियादी जरूरतों की अनदेखी तो नहीं कर रहे?
अगर यह शोध सफल होता है तो निश्चित ही यह पारंपरिक ज्ञान और आधुनिक शिक्षा का सुंदर संगम साबित हो सकता है। लेकिन यह भी जरूरी है कि सरकार और प्रशासन कॉलेजों के ढांचे में सुधार करें ताकि छात्रों को पढ़ाई के लिए अनुकूल वातावरण मिल सके।